In loving memory of a friend who will be missed.
सुना है कि मौत के हमसफ़र बन चले हो तुम,
हमको खुदा के वास्ते रुसवा कर चले हो तुम
भागते रहे हैं हम पर अब भी हैं दौड़ में,
और तेज़ रफ्तार से आगे निकल चुके हो तुम
ऐसी दुनिया कि जीने को हैं सब मर रहे,
ऐसा दिल कि मर के जी रहे हो तुम
हो या न हो रोज़-ए-क़यामत या जन्नत-ओ-जहन्नुम ,
है तो बस ये बात कि कभी तो मिले हो तुम
रो तो सकते हैं पर अब भी याद है
कि निगाहों से नही जाम से छलकाते रहे हो तुम
गर नही दीवानगी तो और क्या है 'अभी'
इक शोख सांस से उम्मीदें रखे हो तुम
Atul Sharma, may you have as much fun in afterlife as you had in this life.
Tuesday, November 06, 2007
suna hai ki
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9 comments:
Nice design of your blog.. Tere personality ko suit karta hai.. Chalakta hua jaam..
Ab yeh bata ki aisa design mila kahan se?
Aur rahi kavita ki baat to acha hi hoga..
Nice composition !!
may ur friend's soul rest in peace !
Indranil
Amazing !
simply awesome...
बहुत ही बढिया लिखा है आपने.. नये आयामों पर सोचने को आपने विवश कर दिया है.. आपके एक मित्र से आपके ब्लौग का पता मिला मुझे, अब ये आपकी मुसिबत है अपने उस मित्र का पता पाना :).. कभी मेरे चिट्ठे(ब्लौग) पर भी आयें.. पता है.. http://prashant7aug.blogspot.com आपको अपने उस मित्र के बारे में भी आपको पता चल जायेगा..:D
Abhishek Ji
Nice creation.
I would request you to podcast this ghazal in your own Voice...
Regards,
Shashi
Prashant , saraahana ke shabdon ke liye dhanyavaad. Ab aapke blog par to aana hi padega. Humara to aisa koi mitr nahi jo humare blog ka prashanshak ho :)
@shashi,
Thanks for this idea. There is that little thing of my voice which is allergic to any kind or recording. But I would give it a try once :)
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