Friday, April 18, 2008

tu ek khayal hai

My attempt here is not as much to rhyme as to let silences and word gaps be as big a part of the poem as the words itself.


मैं तुझे भूला नही हूँ,

हाँ,
कुछ अरसा हुआ तेरा नाम लिए,
न लेने का वादा जो किया है ख़ुद से,
ये वादा भी..
की
तेरी हस्ती बस एक एहसास है,
तेरी बातें बस आवाज हैं,
तेरे वादे बस अल्फाज़ हैं,
तू तू नही ,
महज ख्वाब है, मेरा ख्याल है,

पर
मैं तुझे भूला नहीं हूँ,

अब जब तू सिर्फ़ एक ख्याल है
और कुछ भी नही,
कभी कभार तुझे सोच लेता हूँ,

कभी तेरे संग गुजारे एक दो लम्हे भी
चुभते हैं...
बर्फ से,
तो कुछ टुकड़े उठा कर,
सागर में मिला पी लेता हूँ,
तेरे खुमार में फ़िर दो पल जी लेता हूँ

(अल्फाज़ - words , सागर - wine cup , खुमार - intoxication)

5 comments:

Raj said...

Nice poem Abhi..

"सागर में मिला पी लेता हूँ,
तेरे खुमार में फ़िर दो पल जी लेता हूँ"

Great lines...
And let me tell you in this poem the silence speaks in volume.. so the gaps which [as u said in beginning] are left by missing rhyming words are not gaps infact they have further made d poem more beautiful.. :-)

Regards,
Shashi

viju said...

i rate it as one of ur best work. three cheers to u :)

PD said...

बहुत खूब सरजी..
लगे रहिये..

आपको याद है मैंने आपको कहा था कि मुझे आपके ब्लौग का पता आपके एक मित्र से मिला था?? आप पता कर पाये या नहीं?? :)

PD said...

चलिये मैं आपको एक हिंट देता जाता हूं.. आपके उस मित्र के बारे में मैंने अपने ब्लौग पर कई बार लिखा है.. यहां तक कि उनसे जुड़ी एक पोस्ट का लिंक आप मेरे ब्लौग के सबसे उपर में ढूंढ सकते हैं.. जिसमें उनकी तस्वीर भी है.. :D

Anonymous said...

आंखों से टूटते है सितारे तो क्या हुआ
चलते नही वो साथ हमारे तो क्या हुआ

तूफ़ान की ज़द में तू मेरे साथ साथ था
कश्ती को मिल सके न कनारे तो क्या हुआ

तन्हाईओं ने मुझ को गले से लगा लिया
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ

सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे
कुछ बे सुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ

मंजिल भी, कारवां भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ

---शिरीष

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