या लगा मत इल्जाम
या लगा मत इल्जाम की बेमुरव्वत हो गए,
या देख जान-ओ-तन से जुदा दिल जिगर हो गए,
धड़कता है बजाये दिल के, दर्द सीने में,
अब जानलेवा नासूर चारा-ओ-मरहम हो गए
आहिस्ता आहिस्ता उतारा तुमने जिगर में खंजर,
आहिस्ता आहिस्ता लहू के कतरे ग़ज़ल हो गए
तुझे महफिल में देख आंखें फेर लेते हैं,
ऐसे हुए रूसवा सनम, तुझसे हम हो गए,
तेरे दिलकश होंट, नर्म बाहें, गुदाज़ बदन
हुए हम जो जवान तुम भी तो हसीं हो गए,
तुमने भी था सोचा बदलोगे जमाने को,
'अभी' तुम्हारे बुलंद इरादे क्या हो गए?
- अभी
(बेमुरव्वत - Lacking Involvement, चारा-ओ-मरहम - cure and ointment, गुदाज़ - well mixed)
as usual comments are open :)
Sunday, March 16, 2008
Ya lagaa mat ilzaam
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5 comments:
Nice poem Abhi..
This line "या देख जान-ओ-तन से जुदा दिल जिगर हो गए" ia simply Great!!!
There are few words which i can't follow... Will u please explain them-बेमुरव्वत, चारा-ओ-मरहम ....
Regards,
Shashi
subhan allah ..nihayat hi khubsurat gazal hai..
धड़कता है बजाये दिल के, दर्द सीने में.
issi mahul me do line hamari taraf se..
socha tha chalege saath kabhi uss manzil tak ,
Na jane kab mazile alag aur raste juda ho gaye.
keep posting frequently..:)
@ vandana, done :)
@viju
waah waah kushwaha ji,
gahri chot?
...dil ko chhoo gaya yeh ghazal, khuda ki kasam,
"Abhi" tumharey kalam ke deewaney hum ho gaye.
I may be echoing the thoughts of most of the audience, but seriously "धड़कता है बजाये दिल के, दर्द सीने में" - this line will make even gulzar see some competition.
subu, thanks but that's blasphemy!
Gulzar sa'ab is the genius of our times.
his lines continue to inspire, bewilder, educate me.
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